सोयाबीन की खेती का समय | सोयाबीन की उन्नत किस्में

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सोयाबीन की खेती का समय

सोयाबीन की खेती का समय- इस ब्लॉग में हम सोयाबीन बोने का समय व उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी देंगे तथा किसान भाई कम लागत में अधिक मुनाफा केसे कमा सकते है। सोयाबीन की बुवाई का समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक उपयुक्त माना जाता है भूमि की 10 सेंटीमीटर तक नमी होना अंकुरण के लिए अच्छा माना जाता हैं। जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बीज बोने की दर 5 से 10% तक बढ़ा देना चाहिये।

इस किस्म की अवधि मध्यम 95 से 100 दिन के भीतर पक्का तैयार हो जाते हैं इसके 100 दाने का औसत वजन 10 से 13 ग्राम तक होता है यह झुलसा रोग के प्रति सहनशील होती है उसकी उपज को 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती हैं।

इसकी अवधि अगेती 90 से 95 दिन की होती है यह किस 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त होता है यह परिमित वृद्धि की किस्म मानी जाती है इसमें बैंगनी फूल और फली चटकन कम होता हैं।

यह वैरायटी अगिति फसल में आती है इसकी अवधि 80 से 85 दिन की होती है इस वैरायटी से 20 से 25 क्विंटल उत्पादन प्रति हेक्टर होता है यह अर्द बौनी किस्म होती है जिसकी ऊंचाई 45 से 50 सेंटीमीटर वह बैंगनी फूल और फल चटकन कम होता हैं।

सोयाबीन की मध्यम अवधि की किस्म है जिसकी आयु 90 से 95 दिन की होती है प्रति हेक्टर इसका उत्पादन 20- 25 क्विंटल तक होता है इसकी विशेषताएं सफेद फूल तथा गर्डल बीटल औरतना मक्खी के लिए यह किस्म रोग प्रतिरोधी क्षमता रखते हैं तथा चारकोलरोट एवं फली झुलसा रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी किस्म है।

इस किस्म की समय अवधि मध्यम 95 से 100 दिन में पक्ककर तैयार हो जाती है इसका उत्पादन प्रति हेक्टर 25 से 30 क्विंटल तक होता है यह गार्डन बीटल वह तना मक्खी किटों के प्रति सहनशील होती है एवं पीला मोजेक रोग के प्रति भी सहनशील यह किस्म होती है।

प्रमुख किस्में

हिमाचल प्रदेश या उत्तर प्रदेश की पहाड़ियां – बैग, एन आर सी 2, पीके 262, पीके 308, पीके 327, पीके 416, पूसा 16, पूसा 20, पूसा 24, शिलाजीत, शिवालिक, VI, सोया I, वी एल सोया 2, वी एल सोया 21, वी एल सोया 47

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली या उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार के मैदान – अलंकार, अंकुर, बैग, पीके 262, पीके 308,
पीके 327, पीके 416, पीके 564, पीके 1024, पूसा 16, पूसा 24, शिलाजीत, एस एल 4, एस एल 96

असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, मेघालय, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड या त्रिपुरा- जे एस 80-21, बिरसा सोयाबीन 1, बैग, पीके 472, पूसा 16, पूसा 22, पूसा 24 और एम ए सी एस 124

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र, राजस्थान, गुजरात या उत्तरी ओडिशा बैग, दुर्गा, गौरव, गुजरात सोयाबीन, गुजरात सोयाबीन 2, जे एस 80-21, जे एस 75-46, जे एस 71- 05, जे एस 335, एम ए सी एस 13, एम ए सी एस 57, एम ए सी एस 58, मोनेटा, एन आर सी 2, एन आर सी 12, पीके 472, एन आर सी 7, पूसा 16, पूसा 24, पंजाब I, जे एस 90-41

कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल या महाराष्ट्र- सीओ I, हार्डी, KHSb 2, एम ए सी एस 124, मोनेटा पीके
471, पीके 1029, पूसा 37, पूसा 40, पीके 472, एम ए सी एस 450

सोयाबीन की प्रजातियों के विकास के लिए 26 से 34 डिग्री का तापमान उपयुक्त रहता है सोयाबीन के पौधे 16 डिग्री से अधिक तापमान पर बीजों का अंकुरण अच्छा होता हैं। फसल पकने के दौरान मौसम मुख्यतः शुष्क होना उपयुक्त रहता है अंकुरण तथा पुष्पी करण के समय लगातार तेज बारिश फसलों के लिए हानिकारक होती है । अच्छी उपज और बीच की अभीष्ट गुणवत्ता के लिए फसल पकने के चरण में मौसम शुष्क होना उपयुक्त माना जाता है।

रोगों से बचने एवं रोगों के प्रति बीज को सहनशील बनाने हेतु बीजो को कार्बेन्डाजिम को 3 ग्राम अथवा का कार्बोक्सीन 2.5 ग्राम और ट्राईकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।

बीजो की बुवाई से कई दिन पहले खेतों में गहरी जुताई करके तैयार कर ले मिट्टी के मोटे तेलों को कल्टीवेटर की सहायता से महीन कर ले फिर सवार पाटा फेर कर जमीन को समतल करके 10 से 15 टन गोबर की खाद डाले तथा जलभराव वाले खेत में जल निकासी की सुनिश्चित व्यवस्था करें।

खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रथम सिंचाई के समय पेंडिं मैथिलीन 30% EC लगाने का चयन कर सकते हैं इसके प्रयोग से खेतों को 8 सप्ताह तक खरपतवार मुक्त रखा जा सकता है।

सोयाबीन की अच्छी फसल के लिए अच्छा सिंचाई प्रबंधन आवश्यक होता है।पानी की कमी होने पर सोयाबीन के उत्पादन पर गहरा प्रभाव पड़ता है तथा वह पौधे पत्तियां गिरा देते हैं फसल की अच्छी स्थिरता के लिए अंकुरण के समय सिंचाई जरूर करे तथा पुष्पीकरण के अंतिम चरण में जब फलियां भरने के समय दूसरी सिंचाई करें ।और बीजों के विकास एवं फलियां के भरने के समय तीसरी सिंचाई करें।

संकेत प्रारंभिक 30 – 40 दिन खरपतवार नियंत्रण जरूरी होता है 20 दिन की खड़ी फसल में घास खरपतवार को नष्ट करने के लिए क्यूजेलेफोप इथाइल 1 लीटर प्रति हेक्टर तथा घास व चौड़ी पट्टी वाले खरपतवारों के लिए इमेजेथाफायर 750 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

राजस्थान में सोयाबीन की खेती

सोयाबीन की खेती मुख्य रूप से राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी मैदान (हाड़ोती का पठार) कृषि जलवायु क्षेत्र में की जाती है सोयाबीन को 20वीं सदी के ”गोल्डन बीन” के रूप में जाना जाता है मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र के बाद राजस्थान वार्षिक उत्पादन (6.0 लाख टन) के साथ क्षेत्र में (7.10 लाख हेक्टेयर ) तीसरे स्थान पर है राजस्थान में बारां और कोटा प्रमुख सोयाबीन उत्पादक जिले हैं सोयाबीन दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण बीन फलिया है। यह वैश्विक खाद्य तेल का 25% योगदान देता है।

किसान भाई सोयाबीन के साथ अनार की खेती तथा पपीते की खेती के बारे में भी जानकारी ले सकते है।

ये सभी जानकारी हमने अनुभवी किसानो तथा भारत सरकार के वेबसाइट से प्राप्त की है।

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