लौकी की खेती की जानकारी
इस ब्लॉग के आधार पर लौकी की खेती की जानकारी व उन्नत किस्में सावधानियां नए तरीके के बारे में बताएंगे
लौकी की फसल एक कद्दू वर्गीय फसल है जो भारत वर्ष में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह तीन मौसमों में उगाई जा सकती है। जायद सीजन में रबी की सीजन में व खरीफ सीजन में, लौकी फायदेमंद सब्जी है। लौकी में कई प्रकार के प्रोटीन विटामिन लवण पाए जाते हैं। लौकी में विटामिन ए विटामिन सी जिंक आयरन कैल्शियम आदि पाए जाते हैं। लौकी में कई प्रकार के गुण पाए जाते हैं जो गंभीर बीमारियों में औषधीयों के रूप में काम आती है।
लौकी के लिए उपयुक्त मिट्टी व जलवायु
लौकी की खेती सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है।
- काली मिट्टी में
- काली दोमट मिट्टी में
- चिकनी दोमट मिट्टी में
- बलुई दोमट मिट्टी में
- मध्यम भूमि भी काफी उपयुक्त होती है।
- मिट्टी का पी.एच मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
- जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
लौकी की खेती का समय
लौकी की खेती साल में तीन बार कर सकते हैं।
- जायद सीजन में – जनवरी से फरवरी में कर सकते हैं।
- खरीफ सीजन में – जून से जुलाई में कर सकते हैं।
- रबी की सीजन में – सितंबर से अक्टूबर में कर सकते हैं।
लौकी की खेती का तापमान
- लौकी के उत्तम विकास के लिए न्यूनतम तापमान 18° डिग्री सेल्सियस होना चाहिए
- सर्वोत्तम तापमान 25° से 27° डिग्री के बीच में होना चाहिए।
लौकी के खेत की तैयारी
खेत की तैयारी के लिए कल्टीवेटर या मिट्टी पलटने वाले हल से मध्य जुताई करें। 2 से 4 दिन तक धूप लगने दे। मिट्टी को भुर-भुरा बना ले वह पाटा लगाकर जमीन को समतल कर ले।
लौकी में खाद व उर्वरक
खेत की तैयारी के वक्त 2 से 3 ट्रॉली सड़ी हुई गोबर की खाद डालें व अच्छी तरह से मिट्टी में मिला दें।
यूरिया खाद 50 किलोग्राम, फास्फोरस खाद 40 किलोग्राम, पोटाश 50 किलोग्राम, गोबर खाद फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा 1/3 यूरिया की मात्रा बुवाई की 25 से 30 दिन बाद वह दूसरी बार फूल आने पर देनी चाहिए।
लौकी की फसल में सिंचाई
लौकी की सिंचाई मौसम के आधार पर की जाती है।
- गर्मियों के दिनों में 2 से 3 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए।
- वर्षा ऋतु में 5 से 7 दिनों के अंतराल में सिंचाई करें। बरसात के दिनों में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
- शीत ऋतु के दिनों में 10 से 15 दिनों के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए
लौकी की बुवाई व बीज उपचार
मंडप विधि व साधारण विधि से :-
प्रति एकड़ में लौकी के बीज की बुवाई 500 से 800 ग्राम की आवश्यकता होती है। यह आप पर निर्भर करता है की कितनी दूरी पर लौकी का रोपन करना चाहिए उस हिसाब से बीज की मात्रा लगती है। अगर आप मंडप विधि से करते हैं तो प्रति एकड़ में 400 से 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। क्यारीयो में करते हैं तो आपको 600 से 800 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। बीज उपचार के लिए मेंकोजेब 63% + कार्बेंडाजिम 12%, 5 ग्राम प्रति 1 किलो बीज के हिसाब से उपचार करें।
लौकी की उन्नत किस्में
लौकी की हाइब्रिड किस्में –
सकाटा की दिशा, अनमोल, अमोग, यू.एस की 906, माइको की माही 8, नूनहैम्स की अनोखी, VNR की हारूना,VNR की सरिता
लौकी की किस्में –
अर्का नूतन, अर्का श्रेयस, पूसा संदेश,
पूसा नवीन, सम्राट, काशी कुंडल, काशी कीर्ति आदि।
यह हाइब्रिड किस्में 50 से 55 दिनों में पहली तुड़ाई कर सकते हैं।
लौकी में खरपतवार नियंत्रण व निराई गुड़ाई
- लौकी की पहली निराई गुड़ाई 30 से 35 दिन में करें।
- लौकी की दूसरी मिराई गुड़ाई 60 से चित्र में दिन में करें।
- निराई गुड़ाई से लौकी में वायु का संचारण अच्छे से होता है वह पौधों की ग्रोथ होती है।
लौकी में लगने वाले रोग व कीट
लौकी का पीला मोजैक रोग
लौकी का मोजेक रोग वायरस से फैलता है व सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। पौधे की नई उभरती हुई पत्तियों पर छोटे-छोटे अनियमित पीले रंग के धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। पत्तियां नीचे की ओर मुड़ने लगती है। पत्तियां सामान्य से छोटी दिखती है।
रोकथाम – 1ml पायरिप्रोसीफेन 10% EC 1 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
15 दिन के अंतराल में दूसरा स्प्रे करें।
लौकी का फल सडन रोग
फलों और पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के काले धब्बे बन जाते हैं। धब्बे बड़े होकर पत्तियां मुरझाकर गिर जाये तब तक फैलता हैं गंभीर मामलों में फलों को पूरी तरह से सड़ा देते हैं जिससे फल काले पड़ कर सड़ जाते हैं।
रोकथाम – संक्रमित पौधों को नष्ट करें।
खरपतवार को खेत से निकाले।
नाइट्रोजन को 3-4 भाग में देवे।
1.5ml टेबूकोनाजोल 25.9% EC या 1.5ml प्रॉपिकोनोजोल 25% EC 1 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
लौकी का डाउनी मिल्डयू रोग
यह फंगस जनित रोग है। बेल वर्गीय फसल में ज्यादा देखने को मिलता है। पत्तियों पर छोटे-छोटे पीले-पीले धब्बे दिखाई पढ़ते हैं और पत्तियां झड़ जाती है वह पौधे पूर्ण रूप से खराब हो जाते हैं।
रोकथाम – ग्रसित पत्तियों को नष्ट कर दे।
क्रेसोक्सिम- मैथिल 18%+मेंकोजेब 54%WP 500 ग्राम प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
लौकी का पाउडरी मिल्डयू रोग
रोग ग्रसित बेलों पर सफेद चूर्ण जैसे धब्बे दिखाई देते हैं ग्रसित पत्तियों व फलों की बढ़वार रुक जाती है बाद में सुख जाते हैं।
रोकथाम – एजोऑस्ट्रोबिन 4.7% + मेंकोजेब 59.7% + टेबुकोनाजोल 5.6% WG, 800 ग्राम प्रति एकड़ में।
मचान विधि से लौकी की खेती
मचान विधि से बांस व तार को जालीनुमा बनाकर बेल वाली फसल को जमीन से ऊपर चढ़ाया जाता है।
लाइन से लाइन की दूरी 5 से 6 फीट रखें।
पौधे से पौधे की दूरी 1 फीट रखें।
मल्चिंग पेपर 25 mm का प्रयोग करें।
लौकी के बेसल डोज खाद
3/4 ट्रॉली गोबर की खाद
SSP खाद 50/60 किलोग्राम
DAP खाद 30/35 किलोग्राम
जिप्सम पाउडर 25/50 किलोग्राम
रीजेंट दानेदार 2 किलोग्राम
प्रति एकड़ के हिसाब से देवें।
लौकी के जड़ों का खाद
पहला खाद 20 से 25 वें दिन
माइक्रोन्यूट्रिएंट्स 2 किलोग्राम
यूरिया खाद 10 किलोग्राम प्रति एकड़ में।
दूसरा खाद 40 से 45 वें दिन
सागरिका दानेदार 5 किलोग्राम
जिंक सल्फेट 2 किलोग्राम
यूरिया खाद 15/20 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से
तीसरा खाद 60 से 70 वें दिन
ह्यूमिक एसिड 10 किलोग्राम
बोरोन 250 ग्राम
मैग्नीशियम सल्फेट 10 किलोग्राम
यूरिया खाद 30 किलोग्राम
चौथा खाद 90 से 120 वे दिन
MOP खाद 20 किलोग्राम
सल्फर 3 किलोग्राम
यूरिया खाद 40 किलोग्राम
अमोनियम खाद 40 किलोग्राम
लौकी में स्प्रे शेड्यूल
पहला स्प्रे 18 से 20 वें दिन
UPL का फंगीसाइड 40 ग्राम
रोगोर 25ml
15 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
दूसरा स्प्रे 30 से 35 वे दिन
एंट्राकोल 40 ग्राम
अडामा प्रीमेन सल्फर 30ml
पोषक सुपर 25ml
15 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
तीसरा स्प्रे 40 से 50 वे दिन
एक्टारा 10 ग्राम
M - 45 = 40 ग्राम
15 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
चौथा स्प्रे 80 से 85 वे दिन
रोको का फंगीसाइड 40 ग्राम
15 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
लौकी की खेती के आधारित पूछे जाने वाले प्रश्न?
लौकी कौन से महीने में लगाई जाती है?
जायद में = जनवरी-फरवरी
खरीफ में = जून-जुलाई
रबी में = सितंबर-अक्टूबर
लौकी का पौधा कितने दिनों में फल देता है?
लौकी की रोपाई के बाद 50 से 55 दिनों में पहले तुड़ाई कर सकते हैं
लौकी की अधिक पैदावार के लिए क्या करें?
फसल में संतुलित मात्रा में खाद और उर्वरकों का प्रयोग।
फूल बढ़ाने के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।
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