गाजर की खेती से कमाई
गाजर की खेती से कमाई(carrot farming) करने हेतु आपको इन सीजन में करनी होगी बुवाई तभी आप ताबड़तोड़ उत्पादन ले सकते हैं साथ ही उच्च गुणवक्ता वाली और देसी किस्मों का उपयोग करें जिससे बेहतर उत्पादन मिल सके।
इन सीजन में करें गाजर की बुवाई
- जून से जुलाई में कर सकते हैं बीज की मात्रा प्रति बीघा 2 से 4 किलोग्राम ले सकते हैं।
- अगस्त से सितम्बर में कर सकते हैं बीज की मात्रा प्रति बीघा 1.5 से 2.5 किलोग्राम ले सकते हैं।
- अक्टूबर से नवम्बर में कर सकते हैं बीज की मात्रा प्रति बीघा 1 से 1.5 किलोग्राम बीज लेवें।
गाजर की खेती से कमाई के लिए इन बातों का रखें ख्याल
- अच्छी पैदावार के लिए गुणवत्ता वाली किस्में और बुवाई का सही समय का होना आवश्यक हैं।
- गाजर की खेती के लिए भूर-भूरी जमीन होना का आवश्यक हैं।
- जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये।
- जमीन को तवी की सहायता से गहरी जुताई करें।
गाजर की खेती के लिये जलवायु
यह एक सर्दी वाली फसल है। इसके बीज अंकुरण के लिए 17.2 से 23.9 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम तथा जड़ों की अच्छी वृद्धि के लिए 18-23 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम उपयुक्त रहता है। (जड़ों के अच्छे रंग के लिए 15-21 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम उपयुक्त रहता है) गाजर के रंग तथा आकार पर तापक्रम का बड़ा असर पड़ता है। बहुत ही ठण्डे तापक्रम में गाजर का रंग बहुत ही फीका एवं लम्बाई बढ़ जाती है। इस प्रकार बहुत गर्म तापमान में रंग और लम्बाई कम हो जाती है। अच्छे रंग और अच्छे आकार के लिए 15 डिग्री सेन्टीग्रेड से 21 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उपयुक्त रहता है।
गाजर की उन्नत किस्में
पूसा रूधिरा
गाजर की यह किस्म मध्य सितम्बर से अक्टूबर में बुवाई हेतु उपयुक्त मानी जाती है इस किस्म की गाजर लाल रंग के पित वाली, मध्यम लम्बाई की तथा त्रिकोण आकारनुमा होती है। यह किस्म दिसम्बर माह से पकना शुरू हो जाती है तथा औसत उपज 30 टन प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हो जाती है।
पूसा वृष्ठि
यह किस्म अगेती बुवाई (जुलाई) के लिए उपयुक्त है। इस किस्म की पकाव अवधि 80-90 दिन तथा उपज क्षमता 250 क्विंटल तक प्रति हैक्टेयर है। यह किस्म उष्ण सहनशील है।
देसी लाल
देसी लाल गाजर की खेती खासकर राजस्थान में की जाती है। इसका रंग लाल होता हैं। गाजर की लम्बाई 12 इंच से 15 इंच तक होती हैं इस किस्म में बाजार भाव अच्छे मिलते हैं इसकी मांग पूना, बम्बई, बेंगलोर में ज्यादा होती हैं। प्रति बीघा 5 से 6 टन उत्पादन होता है।
भूमि का चुनाव व उसकी तैयारी:
गाजर की अच्छी पैदावार के लिए गहरी, भुरभुरी हल्की दोमट तथा अच्छे जल निकास वाली मिटटी उपयुक्त रहती है। इसमें भूमिका पीएच मान 5.5 से 7.5 तक उपयुक्त माना जाता है। जमीन की तैयारी के लिए देसी हल एवं हेरो के माध्यम से दो-तीन बार गहरी जुताई करें । इसके बाद आखिरी जुताई के लिए गहरी जुताई करनी आवश्यक है इसमें आप मेड़ विधि क्यारी एवं समतल भूमि पर भी गाजर की फसल लगा सकते हैं।अलग-अलग क्षेत्र में गाजर की बुवाई अलग-अलग तरीकों के माध्यम से की जाती है भूमि को समतल बनाने के लिए आवश्यकतानुसार पाटा भी चलायें। खेत की तैयारी के लिए अच्छी सड़ी हुई 250 क्विटल गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर मिलायें।
खाद एवं उर्वरक
गोबर की खाद के अलावा 60 किलो नत्रजन 40 किलो फास्फोरस तथा 120 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर देवें। इसमें से नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अन्तिम तैयारी के समय डाल देवें। शेष बची हुई नत्रजन की मात्रा बुवाई के 45 दिन बाद खड़ी फसल में देवें।
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बीज की मात्रा एवं बुवाई (गाजर की खेती से कमाई)
- अगेती गाजर की बुवाई जुलाई महीने में करने के लिए बीच की मात्रा तीन से चार किलोग्राम प्रति बीघा आवश्यक होती है।
- पिछेती गाजर में बीज की मात्रा कम लगती है इसमें दो से ढाई किलोग्राम प्रति बीघा की आवश्यकता पड़ती है।
सिचाई एवं निराई गुडाई
पहली सिचाई बोने के तुरन्त बाद कर देवें तथा बीज उगने तक भूमि मे नमी बराबर बनाये रखें। गाजर के बीज को उगने में 8 से 10 दिन लगते है। बीज उगने के बाद जब आवश्यक हो तो पौधों में खरपतवार नहीं पनपने देवें।
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गाजर में रोग एवं रोकथाम
पत्ती धब्बा – गाजर की पत्तियों पर गोलाकार पीले धब्बे पड़ जाते हैं। व बाद में इनका रंग भूरा पड़ जाता है। इसकी वजह से पत्तियां झुलस जाती हैं।
नियंत्रण हेतु मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से आवश्यकतानुसार छिड़कें।
छाछ्या – इस रोग के शुरु में सफेद चूर्ण जैसे छोटे-छोटे धब्बे पत्तियों एवं तने का सारा भाग ढक लेते हैं।
नियन्त्रण हेतु डाइनोकेप एल सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।
गाजर की खुदाई – गाजर की खुदाई करने से पहले हल्की सिंचाई कर देवें। जिससे बुवाई करने मे आसानी रहे। जब गाजर पूर्ण विकसित हो जावे तब उन्हें खोद लेवें। गाजर गाजर की कई किस्म 80 से 85 दिन मे पककर तैयार हो जाती है। तथा कहीं देसी किस्म 105 से 110 दिन पककर तैयार हो जाती है अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग किस्म का चुनाव करना बेहद जरूरी होता है खुदाई में देरी करने से गाजर की जड़े शीर्ष से विभाजित हो जाती है। तथा खाने योग्य नहीं रहती है।
उपज – गाजर की पैदावार 250 से 300 क्विटल प्रति हेक्टेयर होती है। विलायती किस्मों की उपज 100 से 150 क्विटल प्रति हेक्टेयर होती है।
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