WhatsApp

भाव जानने के लिए अभी जॉइन करें

जॉइन करें

बाजरा की किस्में (bajra ki kisme) variety of bajra

हमारे व्हाट्सएप चैनल से जुड़े अभी जुड़े
हमारे टेलीग्राम ग्रुप से जुड़े अभी जुड़े

बाजरा को एक प्रमुख भोजन के तौर पर शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्र में उगाया जाता है यह इन क्षेत्रों में पौष्टिकता का उत्कृष्ट स्रोत है पौध के रूप में बाजरा अनुवांशिक और वानस्पतिक मिश्रण का अच्छा उदाहरण है।

समृद्ध कृषि क्षेत्र में यह हरे चारे का भी अच्छा स्रोत है तथा फसल चक्र प्रणाली में इसका महत्वपूर्ण स्थान है विश्व में बाजार के उत्पादन की दृष्टि से भारत का प्रमुख स्थान है क्योंकि यहां 90 लाख से 1 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में बाजरे की खेती की जाती है।

बाजरे की खेती के प्रमुख राज्य


राजस्थान महाराष्ट्र गुजरात उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा है इनमें देश की कुल उपज का 90% उत्पादन होता है।

बाजरे की खेती अधिकतर कम उपजाऊ और बलुई मिट्टी में की जाती है जिसमें बहुत कम या नहीं के बराबर उर्वरकों की आवश्यकता होती है इन क्षेत्रों में वर्षा 200 से 500 मिलीमीटर के बीच होती है।

बाजरा की फसल में अधिक तापमान सहन करने मे साबित होती है इसी वजह से इसको भिन्न-भिन्न कृषि क्षेत्र में उगने की संभावनाएं बढ़ जाती है बाजरे की खरीफ की बुवाई जून से अक्टूबर में की जाती है रबी में नवंबर से फरवरी में की जाती है गर्मी में मार्च से जून में भी इसकी खेती करने का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है।

बाजरा की किस्में


60 से 70 के दशक में उच्च पैदावार वाली शंकर प्रजातियों के विकास से उत्पादन वृद्धि की शुरुआत हुई निरंतर वैज्ञानिक शोध और विकास के प्रयासों से उत्पादन में स्थिरता की समस्या का निदान हुआ है और उत्पादकता बड़ी है सन 1990 से 80 से 85 दिनों में तैयार होने वाली बाजरे की आनुवंशिक उन्नत प्रजातियां से खरीफ या ग्रीष्म फसलों में और अधिक उत्पादन संभव हो चुका है।

इस वर्ष में खेती के क्षेत्र के अनुसार शोध संस्थानों ने उच्च उत्पादन वाले अनेक हाइब्रिड किस्मे एवं प्रजातियां विकसित की है।

बाजरा की बुवाई


जून से जुलाई के तीसरे सप्ताह तक या मानसून आते ही तुरंत कर देनी चाहिए जहां भी सिंचाई सुविधा उपलब्ध है रबी की फसल में इसकी बुवाई नवंबर में तथा ग्रीष्मकालीन के लिए मार्च में कर देनी चाहिए। रोगों की समस्या से बचाव के लिए जुलाई के प्रारंभ में बुवाई करना अच्छा माना गया है अच्छी उपज के लिए गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई आवश्यक है ताकि खरपतवार के बीज नष्ट हो सके और बीमारी फैलने वाले कीट पतंग और बीमारियों का अंश समाप्त हो सके

अतः उसके बाद प्रति हेक्टेयर 5 टन गोबर की खाद को समतल खेत में बुवाई से 8 सप्ताह पहले डालना चाहिए प्रति हेक्टेयर बीच की मात्र 4 से 5 किलोग्राम होनी चाहिए बुवाई से पहले बीजों को 10% नमक से उपचारित करना चाहिए अधिक उत्पादन के लिए हाइब्रिड यानी शंकर या प्रमाणित बीजों को ही बोना चाहिए जैविक खाद को प्रयोग में लेना चाहिए। उपचारित करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं


बुवाई 45 से 60 सेंटीमीटर दूरी की लाइनों में की जानी चाहिए और पौधे से पौधे की दूरी 12 से 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। प्रभावी खरपतवार के नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 से 25 दिनों बाद निराई गुड़ाई करने चाहिए अच्छे उपज के लिए आवश्यक है खेत को खरपतवार से मुक्त रखा जाए इन्हें हाथ से अथवा मशीन से गुड़ाई करके हटाया जाता है। जिससे अच्छे परिणाम मिलते हैं।

बाजरा की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक


सूखा प्रभावित क्षेत्र में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन और 20 किलोग्राम फास्फोरस उर्वरक प्रयोग किया जाना चाहिए पर्याप्त नमी वाले अर्थात A और B जोन में उर्वरक की आवश्यकता 60 किलोग्राम नाइट्रोजन और 30 किलोग्राम फास्फोरस को होती है सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों में 125 किलोग्राम नाइट्रोजन 62.5 किलोग्राम फास्फोरस उर्वरक का इस्तेमाल उपयुक्त माना जाता है और फास्फोरस उर्वरक की पूरी मात्रा का प्रयोग किया जाना चाहिए

बाजरा मुख्यतः बरसाती फसल है फिर भी फूल आने की स्थिति में इसमें सिंचाई से फायदा होता है बरसात होने की स्थिति में संचित क्षेत्र में 3-4 सिंचाई करने का सुझाव दिया जाता है परंपरागत तरीके में बाजरा को तिलहन और दलहन फसलों के साथ बोया जाता है फिर भी शंकर यानी हाइब्रिड किस्म की उपलब्धता से अब अकेले बाजरे की खेती करने का प्रचलन होने लगा है

बाजरे की फसल में रोग


बाजार की फसल में तीन रोगों का प्रकोप होता है।


बाजरा का जोगिया रोग (Downy Mildew)

बाजरा की किस्में

अनुकूल मौसम की स्थिति में इन रोगों से 10 से 40% उत्पादन की हानि हो जाती है इसलिए आवश्यक यही है कि सही समय पर इसकी पहचान की जाए ताकि रोग प्रबंधन की औसत प्रक्रिया अपनाई जा सके। 7 से 10 दिन हरियाली विहीन तथा पीले हो जाते हैं अत्यधिक संक्रमण होने पर पौधों की वृद्धि रुक जाती है बात की स्थिति में फूल पत्तों के आकार में बदल जाते हैं


बाजरा का कांगयारी रोग (स्मट)

बाजरा की किस्में

रोग के लक्षण इस प्रकार है संक्रमित पुष्प ग्रंथि कड़वा सुरई में परिवर्तित हो जाते हैं यह गहरे हरे रंग की होती है तथा सामान्य दाने से 2-3 गुना ज्यादा बड़ी होती है बाद में मौसम में काली होने लगती है कलाई तथा रोगों को बनाए रखने में सहायक होती है प्रभावी रोग प्रबंधन के लिए परामर्श इस प्रकार है मैं जून में गहरी जुताई रोग रोधी हाइब्रिड किस्म की खेती खेतों से रोग ग्रस्त पौधों को निकालना।


बाजरा का चेंपा रोग (Ergot)

बाजरा की किस्में

यह बीमारी पौधे के सिटे पर गोंद व शहद वी जैसा रस पदार्थ निकलता है यह भुरे वह चिपचिपा सा होता है नियंत्रण के लिये उपाय रोग मुक्त किस्मो का उपयोग करना। खेत की सफाई रखना।

बाजरा का बीज उपचार


कार्बेंडाजिम 500 ग्राम 5 से 10% फूल आने पर स्प्रे करें।

ज्यादा पानी वाली हाइब्रिड बाजरा की किस्में


पूसा – 145, पायोनियर 86M84, पायोनियर 86M88, निजिविदु बलवान, राशि 1827, कावेरी सुपरबॉक्स, श्रीराम 8494, प्रोएग्रो 9444, राज 167, MP 7878

कम पानी वाली हाइब्रिड बाजरा की किस्में


HHB 67, पूसा 123, नंदी 70, नंदी 72

बाजरा खाने के फायदे

बाजरा सेहत के लिए संजीवनी बूटी की तरह काम करता है बाजरा में ज्यादा मात्रा में फाइबर पाया जाता है डायबिटीज व शुगर लेवल को कंट्रोल रखने में काफी फायदेमंद होता है इम्यूनिटी बूस्ट रखता है।

इन ब्लोग्स के साथ आप ये भी पढ़ सकते है।

सोयाबीन की खेती के बारे में जानकारी- किसान भाई जरुर देखे

हाइब्रिड भिंडी की खेती करके किसान हो रहे मालामाल

कपास की किस्म,रोग और उपचार |Best cotton Varieties in India 2024

अनार की खेती कैसे करें- क्या आप ये गलतिया तो नहीं कर रहे है ?

ये सभी जानकारी हमने अनुभवी किसानो तथा भारत सरकार के वेबसाइट से प्राप्त की है।

Leave a Comment