हाइब्रिड भिंडी की खेती– भिंडी भारतवर्ष की प्रमुख फसल है जिसकी खेती विभिन्न क्षेत्रों में की जाती है अच्छे व उच्च पोषण के कारण भिंडी का सेवन सभी आयु वर्ग लोगों के लिए बहुत ही लाभदायक माना जाता है इसमें मैग्नीशियम पोटेशियम विटामिन A ,B पाये जाते हैं भिंडी में कार्बोहाइड्रेट प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
बाजारों में इनका अच्छा मूल्य प्राप्त होता है जिससे किसानों के मुख पर खुशी छाई रहती है हाइब्रिड भिंडी की खेती करके किसान भाइयों ने भिंडी में सभी प्रकार के रोग व उपचार के लिए जानकारी व फसलों में लगने वाले कीटों की रोकथाम के लिए विस्तार से जानकारी दी गई है।
हाइब्रिड भिंडी की खेती
हाइब्रिड भिंडी की खेती ज्यादा उत्पादन आजकल बहुत जरुरी हो गया है क्योकि रोग प्रतिरोधकता ज्यादा होती है तथा ये कम लागत में अधिक पैदावार देती है और मौसम के अनुसार सहनशील होती है।
भिंडी की खेती का समय
हमारे भारत देश में भिंडी दिसंबर से लेकर अगस्त तक कर सकते हैं आगे की खेती के लिए आप साधारण तरीके से खेती करना चाहते हैं तो 20 जनवरी से करनी चाहिए जिससे 8 से 10 दिनों में बीजों का जर्मिनेशन अच्छे से होगा वह दिन का तापमान सामान्य हो जाएगा जिससे आपकी भिंडी की अच्छी ग्रोथ रहेगी।
भिंडी के लिए भूमि की तैयारी
भिंडी की खेती करने के लिए मजबूत मिट्टी का होना आवश्यक है जिसमें उर्वरकता शक्ति ज्यादा हो वह उन खेतों का चयन करना चाहिए जिसमें चिकनी दोमट मिट्टी हो मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 होना चाहिए वह जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो।
भिंडी के ज्यादा उत्पादन लिए खाद और उर्वरक
सबसे पहले आप सड़ी हुई गोबर की खाद को डालना चाहिए प्रति एकड़ में 5 से 6 ट्रॉली खाद डालना निश्चित है क्योंकि भिंडी की फसल में बहुत ताकतवर जमीन चाहिए भिंडी को लंबे समय के लिए चलना होता है इसके साथ आप रासायनिक खाद्य से सिंगल सुपर फास्फेट , D.A.P और म्यूरेट ऑफ़ पोटाश व 25 किलो यूरिया डालना चाहिए वह 3 से 5 किलो सल्फर डालना चाहिए। जड़ की गांठो की रोग के लिए कार्बोफ्यूरोन डालना चाहिए और सभी खादों को अच्छी तरह मिला देना चाहिए वह अच्छी तरह से रोटावेटर या कल्टीवेटर चलाकर जुताई करें वह गहरी जुताई करके मिट्टी को भुर- भुरा बना ले।
मेड विधि से भिंडी की बुवाई
नए तरीके से भिंडी की खेती करे तो अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं मेड को ट्रैक्टर के माध्यम से भी व हाथ से भी बनाया जा सकता है मेड से मेड की दूरी 12 इंच रखें वह पौधे से पौधे की दूरी 12-15 इंच रखें। मेड के दोनों साइड में बीज लगाएं।
हाइब्रिड भिंडी की किस्में
भिंडी की खेती के लिए सबसे जरूरी बात यह है कि आप अपने एरिया के हिसाब से अच्छी किस्म का उपयोग करें।
एडवांटा (राधिका)

राधिका भिंडी इनमें फलों की लंबाई 12 -14 सेंटीमीटर होती है वह चौड़ाई 1.5 से 1.8 सेंटीमीटर होती है फल का रंग गहरा हरा होता है फल की तुड़ाई के बाद लंबे समय तक टिक सकती है ये किस्म येलो मोजेक वायरस और लीफ कर्ल वायरस के लिए मध्यम सहनशील होती हैं इससे अधिक उत्पादन भी पा सकते हैं।
सिजेंटा OH 102

ये भिन्डी अच्छी ताकत और गहरी कटी पत्तियों के साथ बोने मध्यम लम्बे पौधे होते हैं इसका फल गिरे हरे रंग का होता है चिकना एक समान कोमल फलिया होती है यह किस्म येलो मोजेक वायरस के प्रति सहनशीलता दिखती है इसमें पौधे से पौधे की दूरी 45 *30 सेंटीमीटर होनी चाहिए 2 से 3 किलो प्रति एकड़ बीज लगाएं
नुनहेम्स (सिंघम)

इस किस्म के पौधे जोरदार लंबे होते हैं व फलों का वजन अच्छा होता है इसका गहरा हरा रंग होता है इसके फलों की लंबाई 12 से 14 सेंटीमीटर होती है वह चौड़ाई 1.5 से 1.8 सेंटीमीटर होती है पंक्ति से पंक्ति की दूरी 1.5 से 2 फीट और पौधे से पौधे की दूरी 0.5-1 फीट होनी चाहिए
नामधारी NH 862

यह किस्म आकर्षक गहरे हरे रंग की होती है इसके फल व पौधों की ऊंचाई मध्यम होती है यह पंक्ति से पंक्ति की दूरी तीन से 5 3.5 फीट से पौधे से पौधे की दूरी 1 फीट होनी चाहिए यह किस में लीफ कर्ल वायरस वह येलो मोजेक वायरस के प्रति सहनशील होती है इसकी पहले तुड़ाई 45 से 50 दिनों में की जा सकती है
सेमिनीज SVOK 5151

यह हाइब्रिड वैरायटी है इसका गहरा हरा रंग होता है वह फल की लंबाई 12 से 14 सेंटीमीटर होती है यह बेहतर हाइब्रिड क्वालिटी तुड़ाई में बहुत ही आसान है यह ग्रीष्म ऋतु व शीत ऋतु में भी लगा सकते हैं येलो मोजेक वायरस के प्रति सहनशील होती है इसके पौधे की हाइट 3 से 5 फिट लंबी होती है वह इसकी पहली तुड़ाई 45 से 50 दिनों में शुरू हो जाती है
भिंडी कौन से महीने में लगायें
ग्रीष्म ऋतु में भिंडी की बुवाई कर सकते हैं फरवरी-मार्च माह में इसका सही समय होता है अगर लगातार फसल लेनी हो तो वर्षा कालीन में भिंडी की बुवाई करें बुवाई का समय जून-जुलाई होता है
भिंडी में होने वाले प्रमुख रोग
भिंडी का हरा तेला व सफेद मक्खी रोग
ये रस चूसक किट होते हैं जो भिंडी के पौधों कीपत्तियों के पीछे की ओर बैठकर पत्तों का रस चूसते हैं जिससे पौधों का प्रकाश संश्लेषण नहीं हो पाता वह पौधा अच्छी ग्रोथ नहीं कर पाता पौधा बोना रह जाता है जिसे भिंडी के पौधे की पत्तियां कटोरा की तरह हो जाती हैं भिंडी के पत्ते पीले भुरे रंग के बाद मैं पत्ते झड़ जाते हैं वह उत्पादन में कमी आ जाती है
ऑर्गेनिक तरीके से कीटों का नियंत्रण
कीट नियंत्रण के लिए या सबसे सस्ता और सबसे अच्छा तरीका है इसमें आपको प्रति 15 लीटर पानी में 75 ml नीम ऑयल 3000 ppm का लेना है और अच्छी तरह से मिलाकर फसल में स्प्रे करना है।
रासायनिक तरीके से कीटों का नियंत्रण
अगर आप रासायनिक तरीके से कीटो का नियंत्रण करना चाहते हैं तो आपको ऐसिटामिप्रिड 20% एस.पी प्रति 15 लीटर पानी में 20 ग्राम डालकर घोल बनाकर स्प्रे करें।
भिंडी में जड़ गलन रोग

यह भिंडी में आमतौर पर होने वाली बीमारी है जिससे पौधे की जड़ गलने लगती है वह पौधा मुरझा जाता है पौधा धीरे-धीरे पीला पड़ कर मर जाता है
उपचार
इसके उपाय के लिए आपको 2 ग्राम बाविस्टीन व 2.5 ग्राम कैप्टान को प्रति एक किलो बीज में मिलाकर उपयोग करना चाहिए
आद्र गलन रोग व नियंत्रण

यह रोग जमीन की सतह पर जो तना होता है नीचे से भाग काला पड़ने लग जाता है वह धीरे-धीरे पौधा कमजोर होकर सूख जाता है अगर वातावरण में आद्रता अधिक हो तो इस रोग का अटैक अधिक होता है इसलिए सही समय पर इसका इलाज करना चाहिए आद्र गलन रोग के नियंत्रण के लिए पहले आप इन बातों का ध्यान रखें कि जल का जमाव नहीं हो इसके लिए उचित प्रबंध करें बीजों का उपचार भी करें और जरूरतमंद के हिसाब से सिंचाई करें। कार्बेन्डाजिम 50% wp 500 ग्राम 1 एकड़ में 150 लीटर पानी के साथ घोलकर ड्रेंचिंग करें। अगर ज्यादा समस्या दिखे तो कॉपर ऑक्सिक्लोराइड 50% wp 1 एकड़ में 200 लीटर पानी में घोलकर ड्रेंचिंग करें।
भिंडी में छाछ्या रोग व नियंत्रण (powdery mildew)
यह भिंडी के पत्तों या तने पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं ज्यादा धब्बे पौधों को प्रभावित करते हैं जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती है वह गिर जाती है वातावरण में ज्यादा आद्रता हो तो रोग ज्यादा देखने को मिलता है यह रोग पुरानी से पुरानी पत्तियों पर ज्यादा देखने को मिलता है। भिंडी में छाछ्या रोग नियंत्रण के लिए हेक्साकोनोजोल 5% ई.सी 1.5 ml मात्रा प्रति 1 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें।
भिंडी का जड़ गांठ रोग
इस रोग की पहचान पौधे छोटे रहना वह धीरे-धीरे पीले पड़ना। भिंडी के पौधे की जड़ों में गांठे बन जाती है। ये ग्रीष्मकालीन ऋतु में होती है जमीन की गहरी जुताई करके धूप लगने दे। जड़ गांठ रोग के लिए उपचार हेतु कार्बोफ्यूरान 3% सी.जी नेमाटाइड 1 एकड़ में 15 किलो का उपयोग करें
अगर जड़ गांठ का रोग ज्यादा है तो बायर की
फ्लुओपाइरम 34.48% एस.सी प्रति एकड़ में 300 ml का प्रयोग करें। इससे आपको लंबे समय तक सुरक्षा प्रदान होगी।
भिंडी का तना छेदक फल भेदक सुंडी नियंत्रण
इस कीट का अटैक जून से नवंबर तक अधिक रहता है यह सुंडी बेलना आकार की होती है इसके शरीर पर भूरे रंग के धब्बे भी होते हैं यह सुंडी पौधों के कुपलो में छेद करके अंदर ही अंदर पनपत्ति है जिससे कुपले मुरझा कर सूख जाती है वह सुण्डिया फल फूल कलियों को भारी नुकसान पहुंचती है। इसके उपचार के लिए हमला 550 कीटनाशक 2 ml 1 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें
भिंडी में लाल मकड़ी कीट नियंत्रण

भिंडी में लाल मकड़ी पत्तियों की पिछली सतह पर होती है वह अपना घर बना लेती है मकड़ी ज्यादा होने पर पूरे पौधे पर फैल जाती है वह पौधे पर जाला बना देती है पौधे भूरे रंग के हो जाता है। भिंडी में लाल मकड़ी कीट नियंत्रण के लिए बायर का ओबेरॉन 1 ml प्रति 1 लीटर पानी में डालकर के छिड़काव करें।
भिंडी के खाने के फायदे

भिंडी पोषक तत्वों से भरपूर होती है वह पाचन क्रिया में सहायक होती है। यह हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल रखती है इम्यूनिटी को बढ़ावा देने में सहायक है आंखों की रोशनी तेज होती है वजन को कम करने में सहायक होती है।
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